प्यार भरी आवाज़ की पुकार थी, कैसे ना मुड़ते ?
मद भरी निगाहों की पुकार थी, कैसे ना मुड़ते ?
किस नज़ारे पे अटकी थी नजर ?
ये देखने की चाह थी, कैसे ना मुड़ते ?
क्या मेरे मुस्कान से आंखों में थी कोई चमक?
ये देखने की चाह थी, तो कैसे ना मुड़ते ?
सागर जो आंखों में ना समा रहा था ,
उसके दिल में बसजाने की राह थी, तो कैसे ना मुड़ते ?
किनारा जो डूबने से बचा रहा था,
उस तक जा, नज़ारे के मजे लेने की राह थी यार ,
तो कैसे ना मुड़ते ?
तो बताओ , उनकी एक पुकार से हम कैसे ना मुड़ते ?
- उलुपी
कमाल का काव्य. बहुत बढिया 👌👌
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Thanks ❤️❤️
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Fabulous poem🤩😍 + your voice 👌👌
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Thank you 🙈♥️
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