
चला है यूं आंखों में,
मंजर तू लेके !
दिल की पोटली में,
समंदर सा लेके !
किस नज़ारे की तरफ
है बढ़ता चला तू ?
क्यों समंदर में डूबने की
साजिश में है तू ?
संभालना, कहीं ना
नजरिए डूबा दे !
गहराई से बचना
ना जरिए दगा दे !
किस मोड़ पे थमना,
ये तय करलेना !
जितनी भरी है पोटली,
जरा खाली करलेना !
मिलेगी किसीको
फिर तुझसे नदिया भी !
खुशी से फिर गुजरेगी,
तेरी सदिया भी !
मिलजाएगी मंजिल तो,
रुकना जरासा !
क्योंकी हमेशा है बढ़ना,
और आगे जरासा !
- उलुपी
Photo by Roman Pohorecki from Pexels Thanks !
Very beautiful poem @ulupi
LikeLiked by 1 person
Thank you ❤️
LikeLike
👌👌👏
LikeLiked by 1 person
Thanks ❤️
LikeLiked by 1 person
मिलजाएगी मंजिल तो,
रुकना जरासा !
क्योंकी हमेशा है बढ़ना,
और आगे जरासा !
ये पंक्तियां कुछ सिखाती है हम्हे अच्छा सा,
आगे बढ़ने की आशा है देती हमेशा जरासा!
♥️
LikeLiked by 1 person
Wow 🙌✨thanks ❤️
LikeLike
वाह सुंदर लेखन सराहनीय प्रयास👌👌
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया 😇🙌
LikeLiked by 1 person