
तेरी रूह तक जाने का सफर,
जो चाह तक रुक सा गया था !
तुझसे राह में मिलने का पहर,
पाने की चाह में गुम सा गया था !
वो लाया ये मंजर है के
बगावत कर ही लिए !
ना मांगे दिल से इजाजत,
महोबत कर ही लिए !
ना सुलझी भी थी हकीकत,
इबादत कर ही लिए !
ना जाने वक्त का कहर,
जो राहे यूं मुड़ी थी !
वो अमृत था या फिर जहर,
उम्मीदे यू जुड़ी थी !
फिर भी वो राह चलने की
जुर्रत कर ही लिए !
लेकर सारी जमानत,
शरारत कर ही लिए !
जीकर फिर ईश्क- ए- शहादत,
शराफत कर ही लिए !
– उलुपी
Waah❤️
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❤️❤️
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