आपके वो पहले दीदार से शुरू हुई एक हसीन दास्तां ..शब्द कम पड़ने लगे, दास्ता सुनाते सुनाते ..वो आपका आपकी पलकों को हौले से उठाना, हया मेरी चेहरे पे छोड दिया करता था ! आपकी उस शरारत भरी हसी से मेरा दिन गुजरा करता था !वो आपका हलके से मेरे करीब से गुजरना दिल की… Continue reading क़यामत तक !
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इश्क !
तेरी रूह तक जाने का सफर,जो चाह तक रुक सा गया था !तुझसे राह में मिलने का पहर,पाने की चाह में गुम सा गया था !वो लाया ये मंजर है के बगावत कर ही लिए !ना मांगे दिल से इजाजत,महोबत कर ही लिए !ना सुलझी भी थी हकीकत,इबादत कर ही लिए !ना जाने वक्त का… Continue reading इश्क !
दोस्त : सून ! दोस्त : क्या ?
भीड़ में खोने का डर क्या कम है ?जो खुद ही के पाक ख़यालो सेतू डरने है लगा ! बहाने लाखो है , एक नहीं रुकने के लिए।जो रुकने के डर से जीतेजी तू मरने है लगा ! दौड़े गा तोड़कर बैसाखियां एहम की तू ,तो तेरा डर डरेगा तुझसे के तू कुछ करने है… Continue reading दोस्त : सून ! दोस्त : क्या ?
नफरत से कुर्बत तक !
तेरे बातों से निकली चुभन दिलपे लगी है..जो नफरत बढ़ाए ये कैसी दिल्लगी है ? हम बातोमे उलझने वाले नहीं है..बातोमे ही खयाल सुलझने वाले कहीं है ! खयालों से नफरत गर दिल में पलेगी..कुरबत की राहें फिर कैसे खिलेगी ? गर मुद्दों को फैसले बनाके चलोगे..हकीकत के सिलसिले से कैसे मिलोगे ! जो नजर… Continue reading नफरत से कुर्बत तक !
मेरे यार !
तेरी गाली से भीहोता है, दिल खुश ।तेरी इक मुस्कान पेकुर्बान है, सब कुछ ! चाहे हो कहीं भी,दुआओ में हमेशा रहता है ।जो मिले तो , " थम जा "वक्त ये पल से कहता है ! छोड़ा है जब जबदुनिया ने मेरा साथ ,हाथो में हमेशा पाया,मैंने तेरा हाथ ! गलतियां दिखाई तुनेमिटाके खोकला… Continue reading मेरे यार !
अफसाना !
कई बार यूं होता है कि,अफसाना बातों मै गुम होता है । कभी यादों में घुटता है ।कभी रिवाजों में बंधता है । कई बार यूं होता है कि,सन्नाटों में टहलता है । कभी हालातों से बहलता है ।कभी डर से और पनपता है । कभी यूं भी होता है कि,इरादे से डर जाता है… Continue reading अफसाना !
कहां चला ?
चला है यूं आंखों में,मंजर तू लेके !दिल की पोटली में,समंदर सा लेके ! किस नज़ारे की तरफहै बढ़ता चला तू ?क्यों समंदर में डूबने कीसाजिश में है तू ? संभालना, कहीं नानजरिए डूबा दे !गहराई से बचनाना जरिए दगा दे ! किस मोड़ पे थमना,ये तय करलेना !जितनी भरी है पोटली,जरा खाली करलेना !… Continue reading कहां चला ?
इक गुफ्तगू !
इश्क़ में दान करना पड़ता है, जां को हलकान करना पड़ता है। और तजुर्बा मुफ्त में नहीं मिलता, पहले नुकसान करना पड़ता है। उसकी बे लब्ज गुफ़्तगू के लिये, आंख को कान करना पड़ता है। फिर उदासी के भी तक़ाज़े हैं, घर को बीरान करना पड़ता है। - मेहशार आफरीदी इश्क़ में समर्पण हो, तो… Continue reading इक गुफ्तगू !
सुनो !
अंधेरे को रोशनी से भर देना.. किसी चांद को मुट्ठी मे रख लेना ! रोते हुए बस यूंही हस देना.. मिठाई सी बातों को चख लेना ! घुस्से मे प्यार भी कर कर देना.. तीखासा मरहम लगा लेना ! नाराजी में राजी करवा देना.. शायरी से इस दिल को समझा लेना ! कभी रूठे, तो… Continue reading सुनो !
ऐ जिंदगी !
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